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पेंसिल का खेल
पीयूष अपने कमरे मे उदास बेटा हुआ होता हैं , उसकी माँ उसे दूर उदास बेठे देख रही थी । पीयूष की माँ फिर पीयूष के पास चली ही जाती हैं फिर :
माँ : क्या हुआ तुम बहुत ही ज्यादा उदास बेठे हो , तुम्हारे उदास होने का क्या कारण हैं ?
पीयूष : कुछ नही मम्मी , वो मेरा पेपर(EXAM) बहुत खराब गया हैं !
माँ कुछ सोच कर चली जाती हैं , और दो मिनट बाद वापिस आती हैं । और कहती हैं ,ये लो पेंसिल तुम्हारे लिए
पीयूष : मैं इसे नही ले सकता क्योकि मेरा पेपर खराब गया हैं ।
माँ : बेटा तुम्हें यह पेंसिल हमेशा एक सीख देगी देखो जब भी इस पेंसिल को छिला जाता हैं तो इसे भी बुरा लगता हैं दर्द होता हैं , बिलकुल तुम्हारी तरह पर यह फिर पहले से भी ज्यादा शार्प हो जाती हैं ओर अच्छी लिखाई भी करती हैं ।
पीयूष पहले बड़े ही ध्यान से यह सब सोचता हैं , और फिर से खुश हो जाता हैं । और फिर वो खुसी - खुसी अपनी माँ की वह पेंसिल भी रख लेता है ।
शिक्षा : एक पेन्सिल जब तक छिलती नहीं है तब तक उससे साफ लिखाई भी नहीं की जा सकती हैं , बिलकुल वैसे ही आदमी को भी अच्छा बनने के लिए कठिनाइयो का भी सामना करना पड़ता है ।
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