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पेंसिल का खेल | Hindi Short Moral Story | Panchtantra Stories

                           पेंसिल का खेल 

पीयूष अपने कमरे मे उदास बेटा हुआ होता हैं , उसकी माँ उसे दूर उदास बेठे देख रही थी । पीयूष की माँ फिर पीयूष के पास चली ही जाती हैं फिर :


माँ : क्या हुआ तुम बहुत ही ज्यादा उदास बेठे हो , तुम्हारे उदास होने का क्या कारण हैं ? 

पीयूष : कुछ नही मम्मी , वो मेरा पेपर(EXAM) बहुत खराब गया हैं !


माँ कुछ सोच कर चली जाती हैं , और दो मिनट बाद वापिस आती हैं ।  और कहती हैं ,ये लो पेंसिल तुम्हारे लिए 

पीयूष : मैं इसे नही ले सकता क्योकि मेरा पेपर खराब गया हैं । 



माँ : बेटा तुम्हें यह पेंसिल हमेशा एक सीख देगी देखो जब भी इस पेंसिल को छिला जाता हैं तो इसे भी बुरा लगता हैं दर्द होता हैं , बिलकुल तुम्हारी तरह  पर यह फिर पहले से भी ज्यादा शार्प हो जाती हैं ओर अच्छी लिखाई भी करती हैं । 

पीयूष पहले बड़े ही ध्यान से यह सब सोचता हैं , और फिर से खुश हो जाता हैं । और फिर वो खुसी - खुसी अपनी माँ की वह पेंसिल भी रख लेता है । 


शिक्षा : एक पेन्सिल जब तक छिलती नहीं है तब तक उससे साफ लिखाई भी नहीं की जा सकती हैं , बिलकुल वैसे ही आदमी को भी अच्छा बनने के लिए कठिनाइयो का भी सामना करना पड़ता है । 

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